Saturday, October 17, 2015

HEALTH-MANAGEMENT (New Book)

There are three primary qualities or principles or mechanisms that govern every human body. These principles are called doshas (Pita, Vata, and Kapha), which are derived from the five elements: earth, air, water, fire, and space. It is the doshas that regulate all actions of the body. When the doshas are balanced, we experience good health, vitality, ease, strength, flexibility and emotional well-being. When the doshas fall out of balance, and/or we accumulate Aam (toxins), then we experience energy loss, discomfort, pain, mental or emotional instability and, ultimately, dis-ease.
                  This book presents the knowledge of these ancient principles and a variety of remedies that create harmony in body, mind, emotions and spirit, thereby restoring optimal health. This approach is natural and preventative. It provides simple, effective means to increase energy, enthusiasm and tranquility.
May purchase "100 golden rules for health" and other health related important matter cost Rs 100/-.
those who are unable to pay may also get free of cost.
please mail : rkavishwamitra@gmail.com

2 comments:

  1. प्रभु प्रेम गली अति साकरी तामें दो न समाय। पहले मै था तो हरि नहि, अब हरि है मै नाहि। सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान। सरगुन निरगुन से है परे तहि हमारा ध्यान। ध्यान का अर्थ श्वास को देखना प्रश्वासको देखना। श्वास भीतर गयी देखना, श्वास बाहर गयी देखना। सिर्फ होश पूर्वक सांस को देखना। जब सांस को अंदर बाहर देखने की गहराई बढेगी, तो तूम्हे यह भी दिखाई पडेगा के सांस भीतर बाहर जाते वक्त बाहर और भीतर क्षण भर ठहरती है। एक छोटासा पल जब सांस भीतर और बाहर ठहरती है। उसी पल में द्वार खुलता है। उसी पलमें साक्षी का अनुभव होता है। क्योंकि सांस का ठहराव पलभर का ही सही, पल मात्र का ही होता है जो ध्यान के वक्त वर्तमान है अभी जहां देखने वाला ही बचता है और देखने वाला स्वयं को देखता है। तो द्रष्टा अपने आपको हि अनुभव करता है। उस अनुभूतिका नाम परमात्मा अनुभूति है।

    मेरो मन सकल सुख को ध्यावै पर कोई सुख हाथ ना आवे।

    અખિલ બ્રહ્માંડમાં એક તું શ્રી હરિ, જૂજવે રૂપે અનંત ભાસે,

    દેહમાં દેવ તું, તેજમાં તત્વ તું, શૂન્યમાં શબ્દ થઇ વેદ વાસે,

    પવન તું પાણી તું ભૂમિ તું ભૂધરા, વૃક્ષ થઈ ફૂલી રહ્યો આકાશે,

    વિવિધ રચના કરી અનેક રસ લેવાને, શિવ થકી જીવ થયો એ જ આશે.....

    Do you know what moksha is ? Getting rid of non existent misery and attaining the bliss which is always there, that is Moksha. जो जड वस्तुसे प्राप्त होता दु:ख जो कही नहीं है फिर भी अनुभव होता है, पर परमानंद जो सदासे प्राप्त है जीससे सब सुखदुखकी अनुभूति होती है वह परमानंदकी अनुभूति अर्थात मोक्ष है।

    सद्गुरु मेरे आत्मा परमात्मा ईश्वर परमेश्वर है, स्थूल दर्शन व्यर्थ है। लम् वम् रम् यम् हम् ૐ कुंडलिनी जाग्रत करनेके लिए दीए गये मंत्र है।

    एको अहम् ना द्वितियो अस्ति। ना भूतो ना भविष्यति ।। अहम् ब्रह्मास्मि ।।

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  2. प्रभु प्रेम गली अति साकरी तामें दो न समाय। पहले मै था तो हरि नहि, अब हरि है मै नाहि। सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान। सरगुन निरगुन से है परे तहि हमारा ध्यान। ध्यान का अर्थ श्वास को देखना प्रश्वासको देखना। श्वास भीतर गयी देखना, श्वास बाहर गयी देखना। सिर्फ होश पूर्वक सांस को देखना। जब सांस को अंदर बाहर देखने की गहराई बढेगी, तो तूम्हे यह भी दिखाई पडेगा के सांस भीतर बाहर जाते वक्त बाहर और भीतर क्षण भर ठहरती है। एक छोटासा पल जब सांस भीतर और बाहर ठहरती है। उसी पल में द्वार खुलता है। उसी पलमें साक्षी का अनुभव होता है। क्योंकि सांस का ठहराव पलभर का ही सही, पल मात्र का ही होता है जो ध्यान के वक्त वर्तमान है अभी जहां देखने वाला ही बचता है और देखने वाला स्वयं को देखता है। तो द्रष्टा अपने आपको हि अनुभव करता है। उस अनुभूतिका नाम परमात्मा अनुभूति है।

    मेरो मन सकल सुख को ध्यावै पर कोई सुख हाथ ना आवे।

    અખિલ બ્રહ્માંડમાં એક તું શ્રી હરિ, જૂજવે રૂપે અનંત ભાસે,

    દેહમાં દેવ તું, તેજમાં તત્વ તું, શૂન્યમાં શબ્દ થઇ વેદ વાસે,

    પવન તું પાણી તું ભૂમિ તું ભૂધરા, વૃક્ષ થઈ ફૂલી રહ્યો આકાશે,

    વિવિધ રચના કરી અનેક રસ લેવાને, શિવ થકી જીવ થયો એ જ આશે.....

    Do you know what moksha is ? Getting rid of non existent misery and attaining the bliss which is always there, that is Moksha. जो जड वस्तुसे प्राप्त होता दु:ख जो कही नहीं है फिर भी अनुभव होता है, पर परमानंद जो सदासे प्राप्त है जीससे सब सुखदुखकी अनुभूति होती है वह परमानंदकी अनुभूति अर्थात मोक्ष है।

    सद्गुरु मेरे आत्मा परमात्मा ईश्वर परमेश्वर है, स्थूल दर्शन व्यर्थ है। लम् वम् रम् यम् हम् ૐ कुंडलिनी जाग्रत करनेके लिए दीए गये मंत्र है।

    एको अहम् ना द्वितियो अस्ति। ना भूतो ना भविष्यति ।। अहम् ब्रह्मास्मि ।।

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