1. मानव जीवन में सुख शांति
मनुष्य की अशांति का कारण उसके खुद के विचार व संकल्प हैं जिसका उसको ज्ञान नहीं है| मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | वह समाज में या घर, परिवार में जिनसे मिलता रहता है, उनके प्रभाव उस पर पड़ते रहते हैं |उसके मन में विचार स्वाभाविक रूप से उठते रहते हैं , कभी वे विचार बढ़िया होते हैं तो कभी घटिया |इन विचारों का उसके जीवन में क्या प्रभाव रहता है उनसे वह बेखबर रहता है यदि उसे इस बात का ज्ञान हो जाए कि वह जिन विचारों से दिन भर खेलता रहता है वे विचार ही उसके सुख दुःख का कारण हैं तो वह काफी हद तक सचेत हो सकता है और इन बुरे विचारों से बचने का प्रयास कर सकता है|
उदाहरण के लिए पति –पत्नी अपने अपने घर में बच्चों के साथ बड़े प्रेम से रहते है | किसी दिन किसी बात पर आपस में कोई अनबन हो जाती है तो पति अपनी पत्नी को कुछ ऐसी बात कह देता है कि वह नाराज हो जाती है और यह नाराजगी किसी की एक दो घंटे की होती है ,किसी कि सप्ताह तक चलती है तो किसी की महीने भर हो जाती है | ऐसी नाराजगी की हालत में मनुष्य घटिया विचार रखता है , यानी उसके मन में दुःख परेशानी ,ईर्ष्या व नफरत के विचार निकलते रहते हैं यह नाराजगी एक घर परिवार में माँ –बेटे ,बाप –बेटे ,भाई-भाई या सास –बहु किसी को भी हो सकती है |अब नाराजगी कि हालत में जो घटिया व हलके विचार होते हैं वे ऊपर ब्रह्माण्ड में जाकर कुछ समय पश्चात् जब वापिस आते हैं तो घर में किसी दुर्घटना,धन का घाटा ,किसी प्रकार के रोग इत्यादि आफत व समस्याओं को लेकर आते हैं जो मन के प्रतिकूल होते हैं और इन्ही कारणों से परिवार दुखी हो जाता है |
और जहाँ घर-परिवार में आपस में एक दुसरे के प्रति प्रेम ,प्यार व प्रसंनता रहती है तथा सभी परिवार के सदस्य आपस में एक दुसरे का भला चाहते हैं तो वह घर हमेशा खुशहाल रहता है और उस घर में किसी भी वस्तु व बात का अभाव नहीं रहता | सब कुछ उस घर में आवश्यकता से अधिक होगा |यह बात रामायण में भी स्पष्ट रूप से लिखी हुई है –
जहां सुमति तहां सम्पति नाना |
जहां कुमति तहां विपत्ती नादाना ||
अर्थात जिस घर के लोगों कि बुद्धि पवित्र ,शांत व सुखात्मक होती है और सभी घर वाले मिल-जुल कर काम करते हैं तो वहां ऋद्धि -सिद्धि स्वयमेव हाथ जोड़कर आ जाती है और वहां सुख कि वर्षा होती रहती है तथा जहाँ लोगों कि बुद्धि विपरीत यानी कि लड़ाई- झगड़े की होती है और जहाँ हमेशा कलह व शीत युद्ध चलता है तो वहां तरह-तरह की आफत व संकट आते रहते हैं |
यह संकल्प शक्ति वाली बात मैंने आपको पति-पत्नी तथा एक परिवार का उदाहरण देकर लिखी है यही बात एक समाज के दूसरे समाज के प्रति , एक धर्म पंथ के दूसरे धर्म पंथ के प्रति ,एक राजनैतिक पार्टी के दूसरे राजनैतिक पार्टी के प्रति विचारों पर घटित होती है | समाज में सुख शांति के लिए आवश्यक है कि एक समाज दूसरे समाज का भला चाहे;एक धर्म पंथ के लोगों से नफरत, ईर्ष्या ,द्वेष के भाव ना रखें ;एक राजनैतिक पार्टी दूसरी राजनैतिक पार्टी का बुरा ना सोचे ; एक देश दूसरे से ईर्ष्या नफरत व लड़ाई-झगड़े के विचार ना रखे |क्योंकि एक छोटे परिवार के लोगों के आपसी ईर्ष्या ,द्वेष व नफरत के विचारों का परिणाम यह दुःख ,तखलीफ ,समस्या आदि हैं तो मनुष्यों के अधिक समूह ,एक दूसरे धर्म-सम्प्रदायों के समूह या राजनैतिक पार्टी वालों के ईर्ष्या ,नफरत आदि मतभेद वाले बुरे विचारों का परिणाम तो और भी अधिक होगा|जैसे भूकंप आना,माहामारी फैलना ,सुखा पड़ना ,बाढ आना इत्यादि ये सब सामूहिक बुरे विचारों का परिणाम है |आज हमारे देश में अचानक महंगाई का बढ़ जाना इसका ज्वलंत उदाहरण है| एक राजनैतिक पार्टी दूसरे राजनैतिक पार्टी कि निंदा ही निंदा का प्रचार करती है ,उस दूसरी पार्टी में कुछ अच्छाई या गुण भी तो होंगें जिसकी चर्चा विरोधी पार्टी के सज्जनों के मुख से कभी नहीं निकलती |
तो आप समझ गए होंगें कि इस लोक में मनुष्य जाति के दुःख का सही कारण है क्योंकि किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसे ही तो फसल काटता है |जैसे कहा है कि –
As you sow, so shall you reap.
विचारों का मनुष्य जीवन में बड़ा महत्व है |वह अपने जीवन में जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है |
2.प्रारब्ध कर्म
मनुष्य के दुःख व अशांति का दूसरा कारण उसके प्रारब्ध कर्म भी हैं क्योंकि मनुष्य अपने प्रारब्ध कर्म लेकर ही इस संसार में जन्म लेता है |उसने जो भी शुभ या अशुभ कर्म किए होते हैं ,उन्ही के अनुसार वैसे ही घर में उसका जन्म हो जाता है| प्रारब्ध कर्म के अनुसार जन्म लेने के पश्चात् उसके इस शरीर में क्रियमान अकरम शुरू हो जाते है जिन्हें वह इस शरीर ,मन व वचन से करता रहता है |
शरीर से यदि वह किसी की चोरी करता है,हत्या करता है या कोई और बुरा कार्य करता है तो वे उसके अशुभ कार्य बन जाते हैं और यदि वह किसी का सम्मान करता है ,दान करता है या कोई और भलाई करता है तो वह उसका शुभ कर्म बन जाता है |इसी प्रकार यदि वह अपनी जुबान से किसी को गाली-गलौच करता है,अपमान करता है,निंदा या चुगली करता है या कड़वी बात कहकर किसी का दिल दुखाता है तो वह उसका अशुभ कर्म है और यदि वह अपनी जुबान से सबको मीठी लगने वाली बात कहता है तो वह उसका शुभ कर्म है |शरीर और वचन के साथ-साथ मन से उठने वाले विचारों से भी वह शुभ-अशुभ कर्म करता रहता है | यदि वह किसी के प्रति बिना कुछ कहे नफरत ,ईर्ष्या व द्वेष के भाव रखता है तो वह उसके अशुभ कर्म बनते हैऔर यदि वह मन से किसी के प्रति प्रेम,प्यार,भलाई व सहानुभूति के विचार रखता है तो वे उसके शुभ कर्म बन जाते हैं | प्रारब्ध कर्मों को भोगता हुआ वह इन क्रियमान कर्मों को करता रहता है और इन क्रियमान कर्मो का फल कुछ तो वह इसी जन्म में भोग लेता है और जो बाख जाते हैं वह शरीर छोड़ने पर उसके संचित कर्मों के खाते में चले जाते हैं जिन्हें उसे आगे के जीवन में भीगने पड़ते हैं |इस प्रकार मनुष्य कि कर्म गति अति गहन है |
At the same time, you should also be able to describe observations and portray your findings effectively.
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ReplyDeleteजी नहीं ।
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteThank you Rajesh Bhiya ji...
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